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#Motivation.. 1. न मैदान छोड़ो, न इंतज़ार करो, बस चलते रहो 2. अगर आप महानता हासिल करना चाहते हो तो इज़ाजत लेना बंद करो। 3. गलतियां इस बात ...

Wednesday, 1 November 2017

सरदार वल्लभ भाई पटेल

😊सरदार वल्लभ भाई पटेल 😊जरूर पढ़ें ,इन पर प्रश्न बन सकता है 😊
 *🔸जन्म*-31 अक्टूबर 1875
*🔸जन्म स्थान*- गुजरात के नाडियाड में
*🔸उपनाम*-लोह पुरुष , सरदार ,बिस्मार्क, शेर ए हिंदुस्तान
*🔸सरदार जी की जाति*- पाटीदार-गुर्जर( कुछ जगह कुर्मी)
*🔸पिता का नाम*-झावेर भाई पटेल
*🔸माता का नाम*-लाडवा पटेल
*🔸पत्नी का नाम*- झावेरबा (1893 विवाह )
*🔸प्रारंभिक शिक्षा*-कारमसद 
*🔸मैट्रिक की परीक्षा पास की*-1897
 *🔸जिला अधिवक्ता की परीक्षा उत्तीर्ण*-1900 में
*🔸व्यवसाय*-वकालत, राजनीति
*🔸1920 वकालत की प्रैक्टिस शुरू की*-गोधरा में
*🔸वकालत के दौरान नाम कमाया*-क्रिमिनल लॉयर
*🔸सरदार पटेल इंग्लैंड गए*- जुलाई 1910 में
*🔸इंग्लैंड में लॉ की पढ़ाई की*- मिडल टेंपल में
*🔸मिडल टेंपल के बेरिस्टर बने*-जनवरी 1993
*🔸स्वदेश वापसी*-13 फरवरी 1913
*🔸गुजरात सभा के मेंबर*- 1915 में
*🔸1917 में चुने गए*- अहमदाबाद मुनिसिपलिटी के काउंसलर
*🔸प्रथम बार गांधी जी से सीधा संपर्क हुआ*-नवंबर 1917 में
*🔸अहमदाबाद में अकाल राहत का प्रबंधन किया*-1918 में

*🔸नो टैक्स आंदोलन का सफल नेतृत्व*-खेड़ा जिले में वसूले जा रहे हैं लेड रेवन्यू के विरुद्ध 1918 में
*🔸स्वदेशी वस्तुएं अपनाई*- 1920 के असहयोग आंदोलन में 
*🔸1921 में अध्यक्ष बने*- 36वें अहमदाबाद अधिवेशन की स्वागत कमेटी के अध्यक्ष बने
*🔸बोरसद में सत्याग्रह किया*- 1922-23 में
*🔸गांधी जी द्वारा वल्लभभाई को कहा गया*-किंग ऑफ बोरसद

*🔸1923 में अध्यक्ष बने*- अहमदाबाद नगर पालिका के निर्वाचित अध्यक्ष बने

*🔸मोरबी काठियावाड़ सम्मेलन की अध्यक्षता की*- 1928 में (अहमदाबाद नगर पालिका के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर)
*🔸नो-टेक्स सत्याग्रह अभियान का सफल नेतृत्व*- 1928 में खेड़ा जिले के किसानों के बारडोली में
*🔸सरदार की उपाधि प्रदान की*-खेड़ा जिले की बारडोली की महिलाओं  के द्वारा
*🔸1928 में राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में उपाधि को मान्यता दी*-भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में सरदार उपाधि को सार्वजनिक मानयता दी गई

*🔸महाराष्ट्र राजनीतिक सम्मेलन की अध्यक्षता*-1929 में

*🔸7 मार्च 1930 को साबरमती जेल भेजा गया*- गांधी जी के नमक सत्याग्रह के पक्ष में प्रचार करने के कारण

*🔸साबरमती जेल से रिहा किया गया*-26 जून 1930 को

*🔸1931 में अध्यक्षता की*- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कराची अधिवेशन की

*🔸जनवरी 1932 से जुलाई 1934 तक कैद रखा गया*- सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान गिरफ्तार कर गांधी जी के साथ यरवदा जेल में

*🔸1934 में रिहा किया गया*- नाक की गंभीर बीमारी के कारण

*🔸1935 से 1942 तक चेयरमैन*-भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संसदीय बोर्ड के

*🔸गृह सूचना और प्रसारण मंत्री बने*-2 सितंबर 1946 को अंतरिम सरकार में

*🔸विट्ठल भाई महाविद्यालय का उद्घाटन किया*- 4 अप्रैल 1947

*🔸भारत सरकार द्वारा रियासतों के विलय हेतु नया विभाग बनाया गया*-25 जून 1947 को रियासतों के लिए सरदार पटेल की अधीनता में एक नया विभाग का निर्माण
*🔸स्वतंत्र भारत के पहले उप प्रधानमंत्री*- सरदार वल्लभ भाई पटेल 15 अगस्त 1947 को गृह स्टेटस सूचना और प्रसारण मंत्री बने

*🔸भारत के उप-प्रधानमंत्री*- 15 अगस्त 1947 से 15 दिसंबर 1950

*🔸सोमनाथ पतन का दौरा किया*- 13 नवंबर 1947 को

*🔸सरदार पटेल को डॉक्टर ऑफ लॉ डिग्री प्रदान की गई*- नागपुर, बनारस और इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा 3,25 और 27 नवंबर 1948 को

*🔸भावनगर राज्य संघ की स्थापना*-15 फरवरी 1948

*🔸राजस्थान राज्य संघ की स्थापना*7 अप्रैल 1948 को

*🔸मध्य भारत संघ की स्थापना का एग्रीमेंट*-22 अप्रैल 1948 को

*🔸उस्मानिया विश्वविद्यालय द्वारा उपाधि दी गई*- 26 फरवरी 1949 को डॉक्टर ऑफ लॉ डिग्री

*🔸नेहरु जी की विदेश यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी संभाली*-7 अक्टूबर से 15 नवंबर 1949 तक

*🔸भारत रत्न से सम्मानित किया गया*-1991 में उनकी मृत्यु के 41 वर्ष बाद

*🔸भारत के भू राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के कारण जाना जाता है*-बिस्मार्क और लोह पुरुष

*🔸सरदार पटेल की मृत्यु*-15 दिसंबर 1950 को

 *🔸सरदार वल्लभ भाई पटेल के स्मारक का शिलान्यास*-31 अक्टूबर 2013 को गुजरात के नर्मदा जिले में ,137 वी जयंती के मौके पर

*🔸सरदार वल्लभ भाई पटेल के स्मारक का नाम रखा गया*- एकता की मूर्ति (स्टैच्यू ऑफ यूनिटी )

 *🔸स्टैचू ऑफ यूनिटी की ऊंचाई*-स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी (93 मीटर )से डबल

*🔸विशेष योगदान*- देशी रियासतों का विलय ,स्वतंत्र भारत की पहली उपलब्धि थी और निर्विवाद रुप से सरदार पटेल का इसमें महत्वपूर्ण योगदान था

*🔸नीतिगत दृढ़ता के लिए गांधीजी ने इन्हें कहा*लौह पुरुष और सरदार

*🔸सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती को मनाया जाता है*- राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में वर्ष 2014 से
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🌻सरदार वल्लभ भाई पटेल का सम्मान- उपाधि- पुरुस्कार🌻

 *♨सरदार वल्लभ भाई पटेल को टाइम विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट कीडिग्री से नवाजा गया नागपुर बनारस और इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा 3,25 और 27 नवंबर 1948 को सरदार वल्लभ भाई पटेल को डॉक्टर ऑफ लॉ डिग्री प्रदान की गई*

 *♨26 फरवरी 1949 को उस्मानिया विश्वविद्यालय ने सरदार पटेल को डॉक्टर ऑफ लॉ डिग्री प्रदान की*

 *♨सरदार वल्लभ भाई पटेल के अभूतपूर्व कार्यों के लिए इनकी मृत्यु के 41 साल पश्चात 1991 में इन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया*

 *♨इनके सम्मान में अहमदाबाद के हवाई अड्डे का नामकरण सरदार वल्लभभाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा रखा गया*

 *♨गुजरात के वल्लभ विद्यानगर में सरदार पटेल विश्वविद्यालय खोला गया*

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*⚜🌺स्टैच्यू ऑफ यूनिटी🌺⚜*

 *♨सरदार वल्लभ भाई पटेल के अविस्मरणीय कार्य के लिए उन्हें सम्मान देने के लिए उनकी याद में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का निर्माण किया जा रहा है गुजरात के नर्मदा जिले में सरदार वल्लभ भाई पटेल की याद में एक स्मारक बनाया जा रहा है*

*♨जिसका नाम एकता की मूर्ति स्टेचू ऑफ यूनिटी रखा गया है यह स्मारक सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा देश हित के कार्य में दिए गए सहयोग के लिए उन्हें सम्मान के रूप में दिया जा रहा है सरदार वल्लभ भाई पटेल की यह प्रतिमा विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति होगी*

*♨31 अक्टूबर 2013 को सरदार वल्लभ भाई पटेल की 140 की जयंती के अवसर पर गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गुजरात के नर्मदा जिले में  सरदार के इस स्मारक का शिलान्यास किया गया है*

*♨इसका नाम एकता की मूर्ति रखा गया है यह मूर्ति स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी से दुगनी उच्चाई वाली बनाई जाएगी इस प्रतिमा को एक छोटे चट्टानी द्वीप पर स्थापित किया जाएगा जो केवाडिया में सरदार सरोवर बांध के सामने नर्मदा नदी के मध्य में है यह प्रतिमा 5 वर्ष में तैयार होनी है*

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*♨सरदार वल्लभ भाई पटेल नहीं राष्ट्रीय एकीकरण कर एकता का एक ऐसा स्वरूप दिया जिसके बारे में उस वक्त कोई भी नहीं सोच सकता था*

 *♨उनके इसी कार्य और सोच के कारण उनके जन्म दिवस को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है  सरदार वल्लभ भाई पटेल के नीतिगत दृढ़ता द्वारा किए गए कार्यों के लिए सरदार लोहपुरुष बिस्मार्क आदि नामों से जाना जाता है*

🌻देशी रियासतों के विलय में भूमिका🌻🍃🌻*

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*♨स्वतंत्र भारत के पहले तीन वर्ष सरदार पटेल उप-प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, सूचना मंत्री और राज्य मंत्री रहे। इस सबसे भी बढ़कर उनकी ख्याति भारतके रजवाड़ों को शान्तिपूर्ण तरीक़े से भारतीय संघ में शामिल करने तथा भारत के राजनीतिक एकीकरण के कारण है।*

*♨5 जुलाई, 1947 को सरदार पटेल ने रियासतों के प्रति नीति को स्पष्ट करते हुए कहा कि- "रियासतों को तीन विषयों 'सुरक्षा', 'विदेश' तथा 'संचार व्यवस्था' के आधार पर भारतीय संघ में शामिल किया जाएगा।"*

*♨धीरे-धीरे बहुत-सी देसी रियासतों के शासक भोपाल के नवाब से अलग हो गये और इस तरह नवस्थापित रियासती विभाग की योजना को सफलता मिली।*

*♨भारत के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भारतीय संघ में उन रियासतों का विलय किया, जो स्वयं में संप्रभुता प्राप्त थीं। उनका अलग झंडा और अलग शासक था।*

 *♨सरदार पटेल ने आज़ादी के ठीक पूर्व (संक्रमण काल में) ही पी.वी. मेनन के साथ मिलकर कई देसी राज्यों को भारत में मिलाने के लिये कार्य आरम्भ कर दिया था।*

*♨पटेल और मेनन ने देसी राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हें स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन रियासतें- हैदराबाद, कश्मीरऔर जूनागढ़ को छोडकर शेष सभी राजवाड़ों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।*

*♨15 अगस्त 1947 तक हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ को छोड़कर शेष भारतीय रियासतें 'भारत संघ' में सम्मिलित हो चुकी थीं जो भारतीय इतिहास की एक बड़ी उपलब्धि थी।*

*♨जूनागढ़ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और इस प्रकार जूनागढ भी भारत में मिला लिया गया।*

*♨जब हैदराबाद के निज़ाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो सरदार पटेल ने वहाँ सेना भेजकर निज़ाम का आत्मसमर्पण करा लिया।*

Tuesday, 31 October 2017

पटवारी विशेष पंचायती व्यवस्था part 2 (by Vikram Sir)

 पटवारी विशेष पंचायती व्यवस्था part 2
💐बलवंतराय मेहता समिति💐
भारत में “पंचायती राज” की स्थापना के उद्देश्य से ही भारत सरकार ने बलवंतराय मेहता की अध्यक्षता में एक समिति की नियुक्ति की थी. इस समिति ने भारतीय लोकतंत्र की सफलता के लिए लोकतंत्र की इमारत को मजबूत करने की आवश्यकता पर बल दिया. इसके लिए उसने प्रजातांत्रिक विकेंद्रीकरण के सिद्धांत को लागू करने की सिफारिश की. इस समिति ने निम्नलिखित सुझाव दिए –

i) सरकार को अपने कुछ कार्यों और उत्तरदायित्वों से मुक्त हो जाना चाहिए और उन्हें एक ऐसी संस्था को सौंप देना चाहिए, जिसके क्षेत्राधिकार के अंतर्गत विकास के सभी कार्यों की पूरी जिम्मेदारी रहे. सरकार का काम सिर्फ इतना रहे कि ये इन संस्थाओं को पथ-प्रदर्शन और निरीक्षण करती रहे.

ii) लोकतंत्र की आधारशिला को मजबूत बनाने के लिए राज्यों की उच्चतर इकाइयों (जैसे प्रखंड, जिला) से ग्राम पंचायतों का अटूट सम्बन्ध हो. इसलिए, प्रखंड और जिले में भी पंचायती व्यवस्था को अपनाना आवश्यक है.

iii) प्रखंड-स्तर पर एक निर्वाचित स्वायत्त शासन संस्था की स्थापना की जाए जिसका नाम पंचायत समिति रखा जाए. इस पंचायत समिति का संगठन ग्राम पंचायतों द्वारा हो.

iv) जिला-स्तर पर एक निर्वाचित स्वायत्त शासन संस्था की स्थापना की जाए जिसका नाम जिला परिषद् रखा जाए. इस जिला परिषद् का संगठन पंचायत समितियों द्वारा हो.

2.ग्राम पंचायत
ग्राम पंचायत का गठन

a) सरपंच
ग्राम पंचायत की न्यायपालिका को ग्राम कचहरी कहते हैं जिसका प्रधान सरपंच होता है. सरपंच का निर्वाचन मुखिया की तरह ही प्रत्यक्ष ढंग से होता है, सरपंच का कार्यकाल 5 वर्ष है. उसे कदाचार, अक्षमता या कर्तव्यहीनता के कारण सरकार द्वारा हटाया भी जा सकता है. अगर 2/3 पञ्च सरपंच के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पास कर दें तो सरकार सरपंच को हटा सकती है. सरपंच का प्रमुख कार्य ग्राम कचहरी का सभापतित्व करना है. कचहरी के प्रत्येक तरह के मुक़दमे की सुनवाई में सरपंच अवश्य रहता है. सरपंच ही मुक़दमे को स्वीकार करता है तथा मुक़दमे के दोनों पक्षों और गवाहों को उपस्थित करने का प्रबंध करता है. वह प्रत्येक मुकदमे की सुनवाई के लिए दो पंचों को मनोनीत करता है. ग्राम कचहरी की सफलता बहुत हद तक उसकी योग्यता पर निर्भर करती है.

b) मुखिया
ग्राम पंचायत के अंतर्गत मुखिया का स्थान महत्त्वपूर्ण है. उसकी योग्यता तथा कार्यकुशलता पर ही ग्राम पंचायत की सफलता निर्भर करती है. मुखिया ग्राम पंचायत की कार्यकारिणी समिति के चार सदस्यों को मनोनीत करता है. मुखिया का कार्यकाल 5 वर्ष है. परन्तु, ग्राम पंचायत अविश्वास प्रस्ताव पास कर मुखिया को पदच्युत कर सकती है. पंचायत के सभी कार्यों की देखभाल मुखिया ही करता है. मुखिया अपनी कार्यकारिणी समिति की सलाह से ग्राम पंचायत के अन्य कार्य भी कर सकता है. ग्राम पंचायत में न्याय तथा शान्ति की व्यवस्था करने का उत्तरदायित्व उसी पर है. उसकी सहायता के लिए ग्रामरक्षा दल भी होता है. उसे ग्राम-कल्याण कार्य के लिए बड़े-बड़े सरकारी पदाधिकारियों के समक्ष पंचायत का प्रतिनिधित्व करने भी अधिकार है. वह ग्रामीण अफसरों के आचरण के विरुद्ध शिकायत भी कर सकता है.

c) पंचायत सेवक
प्रत्येक ग्राम पंचायत का एक कार्यालय होता है, जो एक पंचायत सेवक के अधीन होता है. पंचायत सेवक की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा होती है. उसे राज्य सरकार द्वारा निर्धारित वेतन भी मिलता है. ग्राम पंचायत की सफलता पंचायत सेवक पर ही निर्भर करती है. वह ग्राम पंचायत के के सचिव के रूप में कार्य करता है और इस नाते उसे ग्राम पंचायत के सभी कार्यों के निरीक्षण का अधिकार है. वह मुखिया, सरपंच तथा ग्राम पंचायत को कार्य-सञ्चालन में सहायता देता है. राज्य सरकार द्वारा उसका प्रशिक्षण होता है. ग्राम पंचायत के सभी ज्ञात-अज्ञात प्रमाण पंचायत सेवक के पास सुरक्षित रहते हैं. अतः, वह ग्राम पंचायत के कागजात से पूरी तरह परिचित रहता है और आवश्यकता पड़ने पर उन्हें पेश करता  है. संक्षेप में, ग्राम पंचायत के सभी कार्यों के सम्पादन में उसका महत्त्वपूर्ण स्थान है.

d) ग्रामरक्षा दल
18 से 30 वर्ष के स्वस्थ युवकों से ग्रामरक्षा दल बनता है. गाँव की रक्षा के लिए यह दल होता है, जिसका संगठन ग्राम पंचायत करती है. चोरी, डकैती, अगलगी, बाढ़, महामारी इत्यादि आकस्मिक घटनाओं के समय यह दल गाँव की रक्षा करता है. इसका नेता “दलपति” कहलाता है.
●ग्राम पंचायत के कार्य ●
i) पंचायत क्षेत्र के विकास के लिए वार्षिक योजनाएँ तैयार करना
ii) वार्षिक बजट तैयार करना
iii) प्राकृतिक आपदा में साहयता-कार्य पूरा करना
iv) लोक सम्पत्ति से अतिक्रमण हटाना
v) कृषि और बागवानी का विकास और उन्नति
vi) बंजर भूमि का विकास
vii) पशुपालन, डेयरी उद्योग और मुर्गीपालन
viii) चारागाह का विकास
ix) गाँवों में मत्स्यपालन का विकास
x) सड़कों  के किनारे और सार्वजनिक भूमि पर वृक्षारोपण
xi) ग्रामीण, खादी एवं कुटीर उद्योगों का विकास
xii) ग्रामीण गृह-निर्माण, सड़क, नाली पुलिया का निर्माण एवं संरक्षण
xiii) पेय जल की व्यवस्था
xiv) ग्रामीण बिजलीकरण एवं गैर-परम्परागत ऊर्जास्रोत की व्यवस्था एवं संरक्षण
xv) प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों सहित शिक्षा, व्यस्क एवं अनौपचारिक शिक्षा, पुस्तकालय, सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि की व्यवस्था करना
xvi) ग्रामीण स्वस्थता, लोक स्वास्थ्य, परिवार कल्याण कार्यक्रम, महिला एवं बाल विकास, विकलांग एवं मानसिक रूप से मंद व्यक्तियों, कमजोर वर्ग खासकर अनुसूचित जाती एवं जनजाति के कल्याण-सबंधी कार्यक्रमों को पूरा करना
xvii) जन वितरण प्रणाली की उचित व्यवस्था करना
xviii) धर्मशालाओं, छात्रवासों, खातालों, कसाईखानों, सार्वजनिक पार्क, खेलकूद का मैदान, झोपड़ियों का निर्माण एवं व्यवस्था करना


●ग्राम पंचायत की आय के स्रोत क्या हैं?●
ग्राम पंचायत की आय के निम्नलिखित साधन हैं – – –
i) भारत सरकार से प्राप्त अंशदान, अनुदान या ऋण अथवा अन्य प्रकार की निधियाँ
ii) राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त चल एवं अचल सपंत्ति से प्राप्त आय
iii) भूराजस्व एवं सेस से प्राप्त राशियाँ
iv) राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त अंशदान, अनुदान या ऋण सबंधी अन्य आय
v) राज्य सरकार की अनुमति से किसी निगम, निकाय, कम्पनी या व्यक्ति से प्राप्त अनुदान या ऋण
vi) दान के रूप में प्राप्त राशियाँ या अंशदान
vii) सरकार द्वारा निर्धारित अन्य स्रोत——————————————————
3.पंचायत समिति
बलवंतराय समिति की अनुशंसा के अनुसार पंचायती राज के लिए प्रखंड स्तर पर भी ग्राम स्वशासन की व्यवस्था की गई है. प्रखंड स्तर पर गठित निकाय पंचायत समिति कहलाता है. प्रत्येक प्रखंड (Development Block) में एक पंचायत समिति की स्थापना होती है जिसका नाम उसी प्रखंड के नाम पर होता है. राज्य सरकार को पंचायत समिति के क्षेत्र को घटाने-बढ़ाने का अधिकार होता है.

●सदस्य●
i) प्रखंड की प्रत्येक पंचायत के सदस्यों द्वारा निर्वाचित दो सदस्य होंगे. जनसंख्या के आधार पर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए स्थान अरक्षित रहेंगे. आरक्षित पदों में भी तीस प्रतिशत पद अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए अरक्षित रहेंगे. यदि दो ही पद आरक्षित हों तो एक महिला के लिए आरक्षित रहेगा. अनारक्षित पदों में भी 30% स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगे.
ii) पंचायत समिति के अंतर्गत प्रत्येक ग्राम पंचायत का मुखिया पंचायत समिति का सदस्य होगा.
iii) प्रखंड के अंतर्गत चुनाव क्षेत्रों द्वारा निर्वाचित राज्य विधान सभा और संघीय लोक सभा के सभी सदस्य होंगे.
iv) विधान परिषद् और संघीय राज्य सभा के वे सभी सदस्य, जो उस प्रखंड के निवासी हों.
सदस्यों का कार्यकाल पाँच वर्ष होगा. यदि पदेन सदस्य इस पद पर नहीं रहे जिस पद के अधिकार से वह सदस्य बना हो, तो वह पंचायत समिति का सदस्य नहीं भी रह सकेगा. राज्य सरकार द्वारा पर्याप्त कारणों से यथासमय निर्वाचन नहीं होने की स्थिति में पंचायत समिति के निर्वाचित पदधारकों की पदावधि पाँच वर्षों की अवधि के अतिरिक्त छह मास तक बढ़ाई जा सकेगी.
वही व्यक्ति पंचायत समिति का सदस्य हो सकेगा, जो —
a) भारत का नागरिक हो
b) 25 वर्ष की आयु का हो
c) सरकार के अन्दर किसी लाभ के पद पर न हो.
स्थाई समितियाँ
पंचायत समिति के कार्यों का सम्पादन स्थाई समितियों द्वारा होगा जिनमें निम्नलिखित प्रमुख समितियाँ होंगी –
a) कृषि, पशुपालन, लघु सिंचाई और सहकारिता समिति
b) शिक्षा समिति जिसमें समाज-शिक्षा, स्थानीय कला और शिल्प, लघु बचत तथा कुटीर उद्योग और शिक्षा आदि होंगे
c) सार्वजनिक स्वास्थ्य और सफाई समिति, यातायात और निर्माण समिति
d) आर्थिक और वित्तीय समिति
e) समाज कल्याण समिति इत्यादि
राज्य सरकार और जिला परिषद् की अनुमति से पंचायत समिति अन्य स्थाई समितियों का निर्माण कर सकती है. प्रत्येक स्थाई समिति में 5-7 तक सदस्य होंगे. सदस्यों का निर्वाचन पंचायत समिति अपने सदस्यों में से ही करती है. प्रमुख को छोड़कर कोई अन्य व्यक्ति दो स्थाई समितियों से अधिक का सदस्य नहीं होता. समिति के सदस्य समिति के अध्यक्ष का निर्वाचन करते हैं. आर्थिक और वित्त समिति का अध्यक्ष पंचायत समिति का प्रमुख होता है. प्रखंड विकास पदाधिकारी स्थाई समितियों का सचिव होता है. समितियों का काम अपने विषयों से सम्बद्ध पंचायत समिति के सारे कार्य संपादित करना है. इस तरह की समिति अपने कार्यों के सम्पादन हेतु B.D.O. से कोई कागज़ माँग सकती है, जिसे बी.डी.ओ. को देना पड़ेगा.

●प्रमुख और उपप्रमुख●
प्रत्येक पंचायत समिति में एक प्रमुख और एक उपप्रमुख होगा, जिनका निर्वाचन पंचायत समिति के सदस्य करेंगे, लेकिन कोई सह-सदस्य इन पदों के लिए उम्मीदवार नहीं हो सकता. प्रमुख पंचायत समिति का अध्यक्ष होता है. उसका कार्यकाल पाँच वर्ष है. पंचायत समिति अविश्वास का प्रस्ताव (No-confidence motion) पास करके और राज्य सरकार आदेश जारी करके प्रमुख और उपप्रमुख को पदच्युत कर सकती है. जिला परिषद् का अध्यक्ष या व्यवस्थापिका का सदस्य निर्वाचित होने पर प्रमुख को अपना पद छोड़ना होगा.

प्रमुख को अनेक अधिकार दिए गए हैं. पंचायत समिति की सभा बुलाना, उसके अध्यक्ष का आसन ग्रहण करना प्रमुख का काम है. वह पंचायत समिति के कार्यों का सञ्चालन करता है, उनका निरीक्षण करता है और उसके कार्यकलाप की रिपोर्ट समिति को देता है. वह प्रखंड विकास पदाधिकारी के कार्यों की भी निगरानी करता है और पंचायत समिति के कार्यों की रिपोर्ट राज्य सरकार को देता है. संकटकाल में वह प्रखंड पदाधिकारी के परामर्श से आवश्यक कार्यवाही कर सकता है. प्रमुख की अनुपस्थिति में उसके सारे कार्यों का सम्पादन उपप्रमुख द्वारा होता है.

●प्रखंड विकास पदाधिकारी●
प्रखंड विकास पदाधिकारी पंचायत समिति का पदेन सचिव (Secretary) होगा और उसका काम पंचायत समिति के प्रस्तावों को कार्यान्वित करना होगा. प्रमुख की अनुमति से वह पंचायत समिति की बैठक बुलाएगा और उसकी कार्यवाही का रिकॉर्ड रखेगा. पंचायत समिति की बैठक में उसे भाग लेने का अधिकार है, किन्तु मतदान करने का उसे अधिकार नहीं है. वह पंचायत समिति के वित्त का प्रबंध करेगा. उसे आपातकालीन शक्तियाँ भी दी गई हैं. प्रमुख और उपप्रमुख की अनुपस्थिति में यदि कोई संकटकालीन स्थिति उत्पन्न हो, तो वह आवश्यक कार्रवाई कर सकेगा और उसकी सूचना जिलाधीश (District Magistrate/Commissioner)को देगा.

●पंचायत समिति के कार्य●
पंचायत समिति को अपने क्षेत्र के अंतर्गत सभी विकास-कार्यों के सम्पादन का अधिकार दिया गया  है. ग्राम पंचायतों, सहकारी समितियों आदि की मदद से पंचायत समिति ग्रामीण क्षेत्र के विकास के लिए कोई भी आवश्यक कार्य कर सकती है. पंचायत समिति के कार्य निम्न प्रकार के होते हैं – –
a) शिक्षा-सम्बन्धी कार्य
b) स्वास्थ्य-सम्बन्धी कार्य
c) कृषि-सम्बन्धी कार्य
d) ग्रामोद्योग- सम्बन्धी कार्य
e) आपातकालीन कार्य
●पंचायत समिति की आय के साधन●
पंचायत समिति की आय के निम्नलिखित साधन हैं-
a) जिला परिषद् से प्राप्त स्थानीय सेस, भूराजस्व का अंश और अन्य रकम
b) कर, चुंगी, अधिभार (surcharge) और फीस से प्राप्त आय
c) सार्वजनिक घाटों, मेलों, हाटों तथा ऐसे ही अन्य स्रोतों से आनेवाली आय
d) वैसे अंशदान या दान, जो जिला परिषदों, ग्राम पंचायतों, अधिसूचित क्षेत्र समितियों, नगरपालिकाओं या न्यासों एवं संस्थाओं से प्राप्त हो
e) भारत सरकार और राज्य सरकार से प्राप्त अंशदान या अनुदान या ऋण सहित अन्य प्रकार की निधियाँ
f) अन्य संस्थाओं से प्राप्त ऋण आदि
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4.जिला परिषद्
प्रत्येक जिला में एक परिषद् की स्थापना होगी. जिला परिषद् के निम्नलिखित सदस्य होंगे –
i) क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों से सीधे निर्वाचित सदस्य. प्रत्येक सदस्य जिला परिषद् क्षेत्र की यथासंभव 50,000 की जनसंख्या के निकटतम का प्रतिनिधित्व करेगा. निर्वाचित सदस्यों की संख्या जिलाधिकारी द्वारा निश्चित की जाएगी. प्रत्येक क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्र से एक सदस्य निर्वाचित किया जाएगा.
ii) जिले  की सभी पंचायत समितियों के प्रमुख.
iii) लोक सभा और राज्य विधान सभा के वैसे सदस्य जो जिले के किसी भाग या पूरे जिले का प्रतिनिधित्व करते हों और जिनका निर्वाचन क्षेत्र जिले के अंतर्गत पड़ता हो.
iv) राज्य सभा और राज्य विधान परिषद् के वैसे सदस्य जो जिले के अंतर्गत निर्वाचक के रूप में पंजीकृत हो.
स्थानों का आरक्षण
निर्वाचित सदस्यों के लिए स्थानों के आरक्षण की व्यवस्था की गई है. अनुसूचितजाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्गों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण की व्यवस्था की गई है. आरक्षित स्थानों 1/3 भाग अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्ग को महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगे. इसके अतिरिक्त पंचायत समिति में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जानेवाले स्थानों की कुल संख्या के 1/3 स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगे.
बैठक
जिला परिषद् की कम-से-कम तीन माह में एक बार अवश्य बैठक होगी. गठन के बाद जिला परिषद् की पहली बैठक की तिथि जिलाधिकारी द्वारा निश्चित की जाएगी जो उस बैठक की अध्यक्षता भी करेगा. कुल सदस्यों के पाँचवें भाग द्वारा माँग किये जाने पर 10 दिनों के अंतर्गत जिला परिषद् की विशेष बैठक बुलाई जा सकती है.
●कार्यकाल
जिला परिषद् का कार्यकाल उसकी प्रथम बैठक की निर्धारित तिथि से अगले पांच वर्षों तक का निश्चित किया गया है.
●अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष
जिला परिषद् के निर्वाचित सदस्य यथाशीघ्र अपने में से दो सदस्यों को क्रमशः अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में निर्वाचित करेंगे. अध्यक्ष-पद के लिए भी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग के लिए स्थान आरक्षित रखने की व्यवस्था की गई है. अध्यक्ष के आरक्षित पदों की संख्या का अनुपात यथासंभव वही होगा जो राज्य की कुल जनसंख्या में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्ग की जनसंख्या का अनुपात होगा. अध्यक्ष-पद के लिए महिलाओं के लिए भी कम-से-कम 1/3 स्थान स्थान अरक्षित रखे गये हैं. जिला परिषद् की बैठक बुलाने, उसकी अध्यक्षता करने एवं उसका सञ्चालन करने का अधिकार अध्यक्ष का ही है. इसके अतिरिक्त जिला परिषद् के सभी पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों पर पर्यवेक्षण एवं नियंत्रण रखना, जिला परिषद् की कार्यपालिका एवं प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण रखना, जिले में प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों को राहत दिलाना इत्यादि उसके मुख्य कार्य हैं.
अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष ही जिला परिषद् की बैठक की अध्यक्षता करता है. अध्यक्ष की अनुपस्थिति में अथवा एक महीने से अधिक की अवधि के लिए अवकाश पर रहने की स्थिति में अध्यक्ष की शक्तियों का प्रयोग और कर्त्तव्यों का निर्वहण वही करता है.
स्थाई समितियाँ
जिला परिषद् में कुछ स्थाई समितियाँ होती हैं, जैसे सामान्य समिति, वित्त अंकेक्षण एवं एवं योजना समिति, सामजिक न्याय समिति, शिक्षण एवं स्वास्थ्य समिति, कृषि एवं उद्योग समिति. प्रत्येक समिति में अध्यक्षसहित पाँच सदस्य होते हैं. जिला परिषद् इससे अधिक सदस्यों की संख्या भी निश्चित कर सकती है. सदस्यों का चुनाव जिला परिषद् के निर्वाचित सदस्यों में से किया जाता है. जिला परिषद् का अध्यक्ष सामान्य स्थाई समिति तथा वित्त अंकेक्षण (finance audit) एवं योजना समिति का पदेन सदस्य और इसका अध्यक्ष भी होता है. उपाध्यक्ष सामजिक न्याय समिति का पदेन सदस्य एवं अध्यक्ष होता है.
अन्य स्थाई समितियाँ अपने अध्यक्ष का चुनाव अपने बीच के सदस्यों में से करती है. विभिन्न समितियाँ विभिन्न प्रकार के कार्यों को सम्पन्न करती हैं.
●मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी●
जिलाधिकारी की श्रेणी का पदाधिकारी जिला परिषद् का मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी होता है जिसकी नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती है. मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी जिला परिषद् की नीतियों और निर्देशों को कार्यान्वित करेगा और जिला परिषद् के सभी कार्यों और विकास योजनाओं के शीघ्र निष्पादन हेतु आवश्यक कदम उठाएगा. अध्यक्ष के सामान्य अधीक्षण और नियंत्रण तथा अन्य पदाधिकारियों और कर्मचारी पर नियंत्रण रखेगा, जिला परिषद् से सम्बन्धित सभी कागजात एवं दस्तावेजों को सुरक्षित रखेगा तथा अन्य सौंपे गए कार्यों को पूरा करेगा. उसे जिला परिषद् की बैठकों में भाग लेने का अधिकार है. वह बैठक में विचार-विमर्श कर सकता है तथा कोई प्रस्ताव रख सकता है, परन्तु मतदान में भाग नहीं ले सकता है.
●जिला परिषद् के कार्य●
i) कृषि-सबंधी
ii) पशुपालन-सबंधी
iii) उद्योग-धंधे-सबंधी
iv) स्वास्थ्य-सम्बन्धी
v) शिक्षा-सम्बन्धी
vi) सामजिक कल्याण एवं सुधार सम्बन्धी
vii) आवास-सम्बन्धी
viii) अन्य कार्य- ग्रामीण बिजलीकरण, वृक्षारोपण, ग्रामीण सड़कों का निर्माण, ग्रामीण हाटों और बाजारों का अधिग्रहण, वार्षिक बजट बनाना इत्यादि.पंचायती राज व्यवस्था

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